Thursday, March 21, 2013

कहें या ना कहें ...


कशमकश में पड़े रहे कि  कहे या ना कहें ..
.
नसों में दौड़ती हो तुम ,
और हम यूँ ही खड़े रहे 
 कि  कहें  या ना कहें ...

तुम्हारा साथ एक बेहतरीन वक़्त था ,
फिर ये क्या सोचते रहे 
 कि  कहें  या ना कहें ...

चाह बस तुमको ही था 
फिर क्यूँ हम डरते रहे 
 कि  कहें  या ना कहें ...

तुम्हारा ज़िक्र कहीं और न हो 
किसी से ना पूछा फिर 
 कि  कहें  या ना कहें ...

सोचा लिख कर ही बता दें 
कलम भी ये लिखती रही 
 कि  कहें  या ना कहें ...

कुछ पलों के सिर्फ कुछ लफ्ज़ थे 
बेवजह का दर्द सहते रहे 
 कि  कहें  या ना कहें ...

इनकार से तुम्हारे क्या हो जाता 
वैसे भी जीना था , वैसे भी जीते रहे 
 कि  कहें  या ना  कहें ...

सामने तुम और उलझन में हम 
क्या करते , मुस्कुराते रहे 
 कि  कहें  या ना  कहें ...

कुछ और लोग भी थे हमारे तुम्हारे बीच 
वो भी हमसे पूछा किये 
 कि  कहें  या ना  कहें ...

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