Tuesday, March 19, 2013

गर मैं वो नहीं, तो कोई और नहीं ...


एक आवाज चाहिए ,
 जो जगाये सोते ज़मीर ,
गर तेरी आवाज नहीं 
तो किसी की नहीं 

कुछ अलफ़ाज़ चाहिए 
जो समझाएं , क्या है सही 
गर तेरे अलफ़ाज़ नहीं 
तो किसी के नहीं 

दो कदम   चाहिए 
चले गर तो चले ज़मीन 
गर तेरे कदम नहीं 
तो किसी के नहीं 

दो निगाहें चाहिए 
दिखाएँ जो ज़िन्दगी 
गर तेरी निगाह नहीं 
तो किसी की नहीं 

एक कन्धा चाहिए 
साथ रहे जो पास यहीं,
गर तेरे कंधे नहीं 
तो किसी के नहीं 

एक अकेला काफी है 
इतिहास बताता रहता है 
गर तू वो नहीं 
तो कोई और नहीं ...

 

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