Sunday, January 27, 2013

आने वाली दूरी

कितनी सारी बातें करनी हैं 
प्यार में रोती इन दो आँखों से ,
खफा हैं ? कुछ कहती भी नहीं ,
दुःख है ? इसका भी पता नहीं 
बस रोती रहती हैं 
मुझे जाना है शायद इसलिए ,

मेरी इन आँखों में हैं , उसकी  दोनों आँखें ,
रोती हुई आँखें 
मेरी इन बाहों में हैं उसकी दोनों बाहें,
कांपती हुई बाहें,
मेरे सीने पर है उसका सर ,
फिर भी आराम नहीं, चैन नहीं   

ना होंठों के मिलने की ज़रूरत, ना किसी चुम्बन की,
 बस कुछ लम्हों का शांत सहारा चाहिए उसे ,
गले से लगाकर उसे बैठा हूँ , इन लम्हों में 
लोग तड़पते हैं इन लम्हों के लिए 
हम इन लम्हों में तड़प रहे हैं।

जाना है ज़रा देर बाद 
ना कदम उठते हैं , ना दिमाग साथ देता है ,
फिर भी जाना तो है ..

दो बातें परेशां कर रही हैं ,
अपने कोहरे में मुझे घेर रही हैं, 
देख रहा हूँ अभी इतना रो रही है वो,
तो मेरे जाने के बाद जाने क्या हाल हो,,
शायद बेचैनी हावी रहेगी, बिलखना जारी रहेगा।।

उसकी ये हालत सोच नहीं सकता,
इसलिए दूसरी बात सोचता हूँ,
मैं उसे छोड़ कर  कैसे जाऊँगा, कैसे रह पाऊंगा,
शायद बेचैनी हावी रहेगी, बिलखना जारी रहेगा।।

आँखों को, मुझको , उसको , सबको पता है , तय  है मिलना ,
बस कुछ दिनों की बात है ,
फिर भी सब रोते हैं,
उसका सवाल--> " क्यों आये ये कुछ दिन ?"
दिनों का जवाब --> " हम भी तुम्हारी ज़िन्दगी का हिस्सा हैं 
                               उतने ही जरुरी, जितनी आने वाली दूरी "

अपने आंसुओं को संभालकर रखा है मैंने ,
क्योंकि  उसके चेहरे पर मुस्कुराहटें देखना चाहता हूँ,
उसकी आँखों को तो समझा ना सका ,
अब अपनी आँखों को समझाने चला हूँ।।।

मुद्दतों बाद

वो नजरें जानती थीं हमें प्यार है उनसे,
इसलिए शायद वो तब मुस्कुराते थे,
मुद्दतों बाद मिले आज , तो हमसे पूछा 
"प्यार अगर करते थे मुझसे तो क्यूँ नहीं तुम बताते थे ?"

बैठें हैं उनके साथ तो देखो बारिश होने लगी है,
बारिश के साथ बिजली भी गिरी होगी कहीं,
और उस पर उनका ये कहना 
"एक हम थे जो सुनने को तरस गए,
एक तुम थे जो इन्तजार कराते  थे "

बूंदों के साथ गुजरा वक़्त भी आया है।
यादों में पहली बारिश सी ठण्ड है ,
और वो कांपता सवाल ,
"क्यूँ नहीं मेरी आँखों की चमक देखी ,
जब तुम मेरे पास आते थे "

ये हवा चेहरे पर बारिश की फुहारें दे गयी है,
फुहारें आंसुओं को धुल देती हैं।
और उसकी  आवाज सुनाई देती है ,
"फुहारों जितना ही वक़्त चाहिए था तुम्हारा ,
वक़्त ही न दिया तुमने वरना तुम ही रात भर हमें जगाते थे "

बारिश का पानी वक़्त की तरह बह चला है राहों में,
जैसे आज हम बह गए, उनकी भीगी निगाहों में  
हमारा जवाब-" शर्म ने हमारी ज़बान बंद रखी,
और कहते  वक़्त हम बहुत  घबराते थे ,
और तुम ही पहल कर देती,इतना भी क्यूँ शर्माते थे ?"

बादलों के बीच धूप रह रह कर शर्माती है 
जैसे रह रह कर उनकी आवाज झिलमिलाती है ,
"शर्म तो हमारी खूबसूरती का हिस्सा है,
घबराहट  में तुम बेवजह दिन गंवाते थे,
और सोचा हमने भी यही कि, कह दें तुमसे  
पर कहने से पहले ही, तुम कहीं चले जाते थे।"

बारिश रुक गयी, अब जाना है,
अलविदा की इस रस्म को निभाना है ,
चलते-चलते कह ही पड़े वो ,
शायद बचा उनका आखिरी ताना है,
" परेशां करते हमें , गर तुम , तो ख़ुशी होती,
क्यूँ नहीं तुम हमें सताते थे ?"

सूख गयी हैं राहें , सूख चूका है पानी 
वो उम्र जा चुकी, बस रह गयी कहानी ,
जाते वक़्त  बताया उन्होंने, हमें
वो अक्सर हमारे किस्से , अपने दोस्तों को सुनाते थे"... 

Friday, January 18, 2013

आखिरी पड़ाव

साथ रहकर भी दोनों तन्हा  रहा करते हैं,
बेवजह की ये घुटन सहा करते हैं,
ज़िन्दगी इसी का नाम है,
कहने वाले अक्सर कहा करते हैं।।।

जब प्यार था, तब ढेरों बातें करते थे, 
कुछ छुपाया नहीं, सब कुछ बयां करते थे,,
जब नाराज़  हुए तो बहुत कुछ कह दिया, 
इसलिए आजकल दोनों खामोश रहा करते हैं।।।
ज़िन्दगी इसी का नाम है,
कहने वाले अक्सर कहा करते हैं।।।

"तुम कैसी हो ?" उसने  पूछा,
"मैं ठीक हूँ" उसने कहा,,
फ़िज़ूल की ये बातें दोनों,
आजकल किया करते हैं।।।
ज़िन्दगी इसी का नाम है,
कहने वाले अक्सर कहा करते हैं।।।

कानो से टकरा कर लौट आती हैं आवाजें ,
दिल तक कुछ पहुँचता ही नहीं ,,
कमरों और दिलों के दरवाजे बंद कर दिए गए हैं,
दरवाजे आजकल बंद ही बेहतर लगा करते हैं।।।
ज़िन्दगी इसी का नाम है,
कहने वाले अक्सर कहा करते हैं।।।

इंतज़ार में आजकल कोई तड़प नहीं,
जल्दी आने के लिए भी कोई झड़प नहीं,,
शाम को जो दो दिल मिलने को तड़पते थे ,
आजकल बेवजह ही सड़कों पर रहा करते हैं।।।
ज़िन्दगी इसी का नाम है,
कहने वाले अक्सर कहा करते हैं।।।

कुछ नहीं हुआ इसलिए वो कुछ नहीं कहता है ,
बहुत कुछ हुआ है , इसलिए दूसरा चुप रहता है,,
बहाने कुछ भी हों,
दोनों बातों से बचा करते हैं।।।
ज़िन्दगी इसी का नाम है,
कहने वाले अक्सर कहा करते हैं।।।

Thursday, January 17, 2013

तुमसे पहले पता ना था

यूँ तो बारिशें पहले भी थीं,
पर ये दिलों तक जाती हैं।।
तुमसे पहले पता ना था ~

चूड़ियाँ दुकानों में पहले भी थीं ,
पर कलाइयों में खूबसूरत हैं।।
तुमसे पहले पता ना था ~

यूँ तो ये चाँद पहले भी था ,
पर ये किसी की तस्वीर है।।
तुमसे पहले पता ना था ~

यूँ तो ये वक़्त पहले भी था,
पर ज़िन्दगी के लिए इतना अहम है।।
तुमसे पहले पता ना था ~

यूँ तो ये राहें पहले भी थी,
पर ये मंजिलों तक जाती हैं।।
तुमसे पहले पता ना था ~

यूँ तो मैं पहले भी था ,
पर मेरे साथ एक खुदा भी है।।
तुमसे पहले पता ना था ~

फासले क्यों ?

चाहें तो फासले कुछ भी नहीं,
फिर भी ये मिटते नहीं ..
चलते तुम भी हो यहीं,
चलते हम भी हैं यहीं।।

जाने कैसे दौर से गुज़र रहे हैं हम,
कि कुछ कहने से पहले सोचना पड़ता है ..
क्योंकि अक्सर महसूस होता है आजकल, 
तुमने जो  सोचा वो मैंने कहा नहीं।।

बहुत कुछ मिला है इस रिश्ते से ,
बहुत कुछ दिया है इस रिश्ते को ..
फिर भी परेशां रहता हूँ मैं ,
क्योंकि शायद इतना काफी नहीं।।

कुछ बातें हो तो मदद मिले, 
कुछ शिकायतें करो तो जवाब मिलें ..
पर हम दोनों को कुछ हो गया है शायद ,
देखो बातें भी ढंग से होती नहीं।।

जो हुआ और जो हो रहा है,
गलती हमारी है या खुदा की मर्जी है ? ..
डरता हूँ इस सवाल का जवाब मिलने तक ,
देर ना हो जाए कहीं।।

सब ठीक हो जाए बस यही चाहता हूँ ,
जानता  हूँ तुम भी यही चाहती हो ..
शाम को घर आने से पहले , 
चलो थोड़ी दूर निकल जाएँ कहीं।।

छत पर

छत पर तुझे बाल झिटकते देखा, हुआ पहली बारिश का एहसास जैसे,,
बालों से लिपटती फिसलती बूँदें , जगाएं एक नयी प्यास जैसे।।
बिन काजल की बेचैन नजरें , मिलीं फिर चुरा ली गयीं,,
रह-रहकर झांक रही हैं अब , फिर से मिलने की हो आस जैसे।।
तुम्हारी आँखों में दिखती चाहत , और उस पर शर्माती बेचैन मुस्कुराहट ,,
घुल रहा हूँ इस नजारें में मैं  ऐसे, ज़िन्दगी पिला रही हो शराब जैसे।।
मेरी सुबहें और मेरी शामें , छत पर ही रहतें हैं आजकल,,
एक बार आ जाओ तो कह दूँ तुमसे, ख्यालों में है एक काश जैसे।।
छत पर दिखती नहीं तुम आजकल, कारण मैं जानता नहीं,,
दिल आधा अधूरा धड़कता है अब, अधूरी पड़ी है सांस जैसे।।
कैसे जुल्फें कैसी बरसातें, आती है ज़िंदगी जाती हैं यादें,,
चेहरा भी तुम्हारा भूलने लगा हूँ, खो रही हो तेरी याद जैसे।।

Wednesday, January 16, 2013

वक़्त बीत गया

बीते लम्हे हमें जब भी याद आते हैं, हमसे वो वापसी की फ़रियाद लाते हैं।।
कहनी थी एक बात तुमसे, जो नहीं कही , ये अश्क ज़बान तक वो बात लाते हैं।।
तुम्हारे साथ गुजारे वो मेहरबान पल , मुझ तक खुदा की कायनात लाते हैं ..
शायरी हमें कभी आती ना थी, ये ग़ज़लें तुझसे जुड़े जज़्बात लाते हैं ...
तेरी आँखें , तेरी अदायें , तेरी चाहत , जैसे शायरी की  किताब लाते हैं ...
जरुरत आज भी है मुझे तुम्हारी, ये मेरी शिकायत, तेरे खयालात लाते हैं।।।
और कल तक  प्यार था और आज कुछ भी नहीं , कैसे-कैसे पल ये हालात लाते हैं।।।

कैसे समझें

~ शर्म तुम्हारी अच्छी लगती है पर , हमसे ही शरमाओ अगर , तो  कैसे समझें ?
~ दूर  इतने हो कि  दिखते  नहीं तुम , कैसे हैं हालत उधर , ये कैसे समझें ?
~ देखना तुम्हे जरुरी सा लगता है, कि  अदाएं हैं तुम्हारी ये मेरे लिए , ये कैसे समझें ?
~ उठती गिरती पलकें तुम्हारी कुछ कहती रहती हैं , नज़र ही ना मिलाओ अगर तो कैसे समझें ?
~ क्यों चाहने लगा हूँ मैं की मैं तुम्हें चाहूँ , क्या ऐसी ही चाहत तुम्हारी , ये कैसे समझें ?
~ सारे ख्याल तुम से शुरू होकर तुम तक ही जाते हैं , अब ये  इश्क के ही हैं ज़ज्बात , ये कैसे समझें ?
~ इश्क के इकरार को पल भर ही काफी है , मिलो ही पल भर अगर , तो कैसे समझें ?
~ लगी है  आग इधर भी और उधर भी, लगी है  आग इधर भी और उधर भी, आती नहीं यहाँ तक आंच , तो        कैसे समझें ~~~