Sunday, January 27, 2013

मुद्दतों बाद

वो नजरें जानती थीं हमें प्यार है उनसे,
इसलिए शायद वो तब मुस्कुराते थे,
मुद्दतों बाद मिले आज , तो हमसे पूछा 
"प्यार अगर करते थे मुझसे तो क्यूँ नहीं तुम बताते थे ?"

बैठें हैं उनके साथ तो देखो बारिश होने लगी है,
बारिश के साथ बिजली भी गिरी होगी कहीं,
और उस पर उनका ये कहना 
"एक हम थे जो सुनने को तरस गए,
एक तुम थे जो इन्तजार कराते  थे "

बूंदों के साथ गुजरा वक़्त भी आया है।
यादों में पहली बारिश सी ठण्ड है ,
और वो कांपता सवाल ,
"क्यूँ नहीं मेरी आँखों की चमक देखी ,
जब तुम मेरे पास आते थे "

ये हवा चेहरे पर बारिश की फुहारें दे गयी है,
फुहारें आंसुओं को धुल देती हैं।
और उसकी  आवाज सुनाई देती है ,
"फुहारों जितना ही वक़्त चाहिए था तुम्हारा ,
वक़्त ही न दिया तुमने वरना तुम ही रात भर हमें जगाते थे "

बारिश का पानी वक़्त की तरह बह चला है राहों में,
जैसे आज हम बह गए, उनकी भीगी निगाहों में  
हमारा जवाब-" शर्म ने हमारी ज़बान बंद रखी,
और कहते  वक़्त हम बहुत  घबराते थे ,
और तुम ही पहल कर देती,इतना भी क्यूँ शर्माते थे ?"

बादलों के बीच धूप रह रह कर शर्माती है 
जैसे रह रह कर उनकी आवाज झिलमिलाती है ,
"शर्म तो हमारी खूबसूरती का हिस्सा है,
घबराहट  में तुम बेवजह दिन गंवाते थे,
और सोचा हमने भी यही कि, कह दें तुमसे  
पर कहने से पहले ही, तुम कहीं चले जाते थे।"

बारिश रुक गयी, अब जाना है,
अलविदा की इस रस्म को निभाना है ,
चलते-चलते कह ही पड़े वो ,
शायद बचा उनका आखिरी ताना है,
" परेशां करते हमें , गर तुम , तो ख़ुशी होती,
क्यूँ नहीं तुम हमें सताते थे ?"

सूख गयी हैं राहें , सूख चूका है पानी 
वो उम्र जा चुकी, बस रह गयी कहानी ,
जाते वक़्त  बताया उन्होंने, हमें
वो अक्सर हमारे किस्से , अपने दोस्तों को सुनाते थे"... 

No comments:

Post a Comment