कुछ पल खुद के साथ, खुद के लिए
जब विचारों पर धुंध छा जाए
जब हौसले बिखरने लगे ,
जब किताबों के पन्ने बिना पढ़े ही पलटने लगें,
जब खुद पर विश्वास ना रहे ,
जब सोच कुछ , समझ कुछ और बातें कुछ और हों,
जब खुद से ही घृणा होने लगे,
जब सपनो के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगने लगे,
जब सपनो को पूरा करने की चाहतें अपना आधार खोने लगें,
जब सपने और सच्चाइयाँ आमने सामने हों और बीच में बस मैं ,
जब बचपन याद आने लगे ,
जब हाँथ बंधने लगें और कदम उड़ने लगें,
जब " ऐसा क्यों हुआ " बिना जवाब लौट आये,
जब कोई और मुझे मेरी याद दिलाये ,
जब बारिशों से भी नफरत होने लगे,
जब ज़िन्दगी बस गुज़र रही हो,
जब आज पर कल की परत हो,
जब ख़ुशी को तलाशना न हो,
जब कुछ तय करना हो,
जब निर्णय को सोच बनाना हो ,
जब मुड़ कर ना देखना हो,
हर पल खुद के साथ खुद के लिए।।।
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