~ शर्म तुम्हारी अच्छी लगती है पर , हमसे ही शरमाओ अगर , तो कैसे समझें ?
~ दूर इतने हो कि दिखते नहीं तुम , कैसे हैं हालत उधर , ये कैसे समझें ?
~ देखना तुम्हे जरुरी सा लगता है, कि अदाएं हैं तुम्हारी ये मेरे लिए , ये कैसे समझें ?
~ उठती गिरती पलकें तुम्हारी कुछ कहती रहती हैं , नज़र ही ना मिलाओ अगर तो कैसे समझें ?
~ क्यों चाहने लगा हूँ मैं की मैं तुम्हें चाहूँ , क्या ऐसी ही चाहत तुम्हारी , ये कैसे समझें ?
~ सारे ख्याल तुम से शुरू होकर तुम तक ही जाते हैं , अब ये इश्क के ही हैं ज़ज्बात , ये कैसे समझें ?
~ इश्क के इकरार को पल भर ही काफी है , मिलो ही पल भर अगर , तो कैसे समझें ?
~ लगी है आग इधर भी और उधर भी, लगी है आग इधर भी और उधर भी, आती नहीं यहाँ तक आंच , तो कैसे समझें ~~~
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